Dhanteras | धनतेरस
दोस्तों, भारत एक त्योहारों वाला देश है और यहाँ पर समय समय पर त्यौहार आते रहते हैं। इन्ही त्योहारों में से एक है Dhanteras का त्यौहार। दोस्तों आज के इस आर्टिकल में आपको धनतेरस के त्यौहार के बारे में बताएंगे । मित्रों आज के इस आर्टिकल में आपको इन सब बातों का पता चलेगा कि -
-- धनतेरस का त्यौहार क्यों मनाया जाता है ?
-- धनतेरस पर बर्तन क्यों खरीदते हैं ?
-- धनतेरस कब मनाया जाता है ?
-- धनतेरस पूजा सामग्री |
-- धनतेरस पूजा विधि |
Dhanteras का त्यौहार क्यों मनाया जाता है ?
दोस्तों, जैसा कि आप सब जानते हैं कि धनतेरस का त्यौहार भारत में बहुत ही हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है । अब मैं आपको ये बताऊंगा कि dhanteras का त्यौहार क्यों मनाया जाता है और इस त्यौहार को मनाने के पीछे क्या कथा है ?
दोस्तों, यह बात काफी समय पहले की है एक राजा थे, हिम। राजा हिम के यहाँ एक पुत्र हुआ और फिर उसकी कुंडली बनायी गयी। उस कुंडली के अनुसार उनके बेटे की शादी के चार दिन बाद ही उनके पुत्र की मृत्यु हो जाएगी। फिर राजा हिम ने फैसला लिया कि वे अपने पुत्र को कहीं दूर भेज देंगे जहाँ कोई लड़की न हो।
फिर राजा ने राजकुमार को ऐसी ही जगह पर भेज दिया पर वहां एक राजकुमारी रहती थी। जब राजकुमार और राजकुमारी ने एक दुसरे को देखा तो उन्हें एक दुसरे से प्रेम हो गया और फिर दोनों ने एक दुसरे से शादी कर ली। फिर शादी के चौथे दिन बाद वही हुआ जो उनकी कुंडली में लिखा था और फिर राजकुमार की मृत्यु हो गयी और फिर यमदूत जी धरती पर आये राजकुमार के प्राण लेने। राजकुमार को मरता देख राजकुमारी बहुत रोई।
राजकुमारी को रोता देख कर यमदूत जी भी थोड़े दुखी हो गए और उनका दिल पिघल गया। लेकिन कुंडली के हिसाब से राजकुमार के प्राण तो लेने थे। इसके बाद यमदूत जी यमराज जी के पास गए और बोले कि हमें एक ऐसा उपाय ढूंढ़ना चाहिए जिससे कि किसी की भी अकाल मृत्यु न हो और इंसान अकाल मृत्यु से बच सके । तब यमराज जी ने कहा जो कोई भी इंसान कार्तिक कृष्ण पक्ष की रात को मेरी पूजा करेगा और दक्षिण दिशा में दीप और माला रखेगा वो इंसान अकाल मृत्यु से बच जायेगा।
मित्रों एक तो ये कहानी है अन्य कहानी इसी से जुड़ी हुई है
दूसरी कहानी इस प्रकार है जो राजकुमारी थी न वो बहुत सुन्दर थी वो बहुत ज्यादा जेवर पहनती थी। फिर उन्होंने उन जेवर का ढेर बना कर कमरे के बाहर रख दिया और घर में दीपक भी जलाये और राजकुमार की शादी के चौथे दिन राजकुमार को पूरी रात कहानी सुनाती रहीं फिर यमदूत जी सांप के रूप में आये राजकुमार के प्राण लेने, फिर उनकी आँखे उन जेवर और दीपक की रौशनी में चौंधियाँ गयी और फिर इस तरह यमदूत को डसने का मौका नहीं मिला और वो भी वहीँ बैठ गए |
वे कुछ न देख सके पर वो सारी रात राजकुमारी की कहानी सुनते रहे। फिर इतने में सुबह हो गयी और राजकुमार के प्राण बच गए |
इस दिन को हम "यमदीपदान" भी कहते हैं । इसी वजह से लोग धनतेरस को पूरी रात रोशिनी करते हैं।
दोस्तों अब तो आप समझ चुके होंगे कि हम धनतेरस क्यों मनाते हैं।
Dhanteras पर बर्तन क्यों खरीदते हैं ?
दोस्तों अब हम आपको ये बताएंगे कि धनतेरस पर बर्तन क्यों खरीदते हैं ?
दोस्तों दिवाली से पहले धनतेरस मनाया जाता है | धनतेरस के दिन नए बर्तन आभूषणों और दूसरी वस्तुओं को खरीदने की परंपरा है लेकिन क्या आपको पता है कि धनतेरस के दिन इन सब वस्तुओं की खरीददारी क्यों की जाती है ?
चलिए हम आपको बताते हैं,
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस मनाया जाता है | बताया जाता है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वंतरी का जन्म हुआ था | इसलिए इस तिथि को धनत्रयोदशी या dhanteras के नाम से जाना जाता है |
कहते हैं कि भगवान धन्वंतरी जब प्रकट हुए थे उनके हाथों में अमृत से भरा कलश लेकर प्रकट हुए थे | इसलिए इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परंपरा है | काफी लोगों का ये भी मानना है कि इस दिन वस्तु आदि की खरीदारी करने से 13 गुना वृद्धि होती है | इस दिन चंद्र का हस्त नक्षत्र भी है जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थी उसी प्रकार भगवान धन्वंतरी भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए थे |
Dhanteras कब मनाया जाता है ?
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस मनाते हैं |
Dhanteras पूजा सामग्री |
तो अब मैं आप को धनतेरस की पूजा में क्या क्या सामग्री चाहिए उसके बारे में बताता हूं | हमें dhanteras की पूजा करने के लिए चाहिए एक कलश, एक बड़ा मिट्टी का दिया, दो छोटे मिट्टी के दिए, कौड़ी कुछ अगरबत्ती, रुई की बाती, मौली, अक्षत (अक्षत होता है कुमकुम और हल्दी में मिले हुए चावल ), कुमकुम, कुछ मिठाई, सिक्के, कुबेर यंत्र, एक लाल कपड़ा, खील और बताशे, जल पात्र, चौकी, पूजा की थाली और रंगोली के कुछ रंग |
Dhanteras पूजा विधि |
दोस्तों धनतेरस की पूजा करने के लिए सबसे पहले चौकी पर एक लाल कपड़ा बिछाएं और जल पात्र से कलश में शुद्ध पानी भरें और फिर उस पर मौली बांधे, फिर फूल के द्वारा कलश के पानी को लेकर अपने मंदिर के आसपास की जगह को शुद्ध करें और फिर रंगोली बनाएं और उस कलश को चौकी पर रख दें |
उसके ऊपर मिट्टी का दिया रख दें फिर कलश के दाएं और बाएं तरफ छोटे दिए रखो फिर कलश के आगे कुबेर यंत्र रखें और फिर कलश में एक सिक्का और कौड़ी डालें | यह भगवान् धन्वन्तरी का रूप है |
यह सब हो जाने के बाद बाजार जाकर बर्तन और सोने चांदी के सिक्के खरीद कर लाइए जिनकी पूजा आप दिवाली के दिन करें सूरज ढलने के बाद एक कटोरी में कुमकुम घोलकर परिवार के सभी सदस्यों को कुमकुम का टीका लगाएं रंगोली में रखे छोटे और बड़े दिए को चलाएं और फिर एक कौड़ी को दीपक में डाल दें और अब कलश में कुमकुम का टीका लगाएं और अक्षत छोड़ें | फिर कलश के आगे खीर बताशे चढ़ा दें |
अब छुट्टे फूल लेकर सभी परिवार वाले भगवान धन्वन्तरी और माता लक्ष्मी को याद करते हुए प्रार्थना करें और प्रार्थना के बाद फूल दीपक के पास छोड़ दें | इसके बाद एक जले हुए दिये को भगवान् कुबेर जी के लिए अपने दरवाजे के बाहर और दूसरे जले हुए दिये को अपने घर के बाहर दक्षिण दिशा की तरफ रख दें | फिर कलश में बचे हुए पानी को अपने घर के दरवाजे पर दोनों तरफ छिड़क कर घर के अंदर आ जाएँ | कुछ लोग धन्वन्तरी की पूजा के बाद होनी इच्छा अनुसार गणेश लक्ष्मी की भी पूजा करते हैं |
दोस्तों यही है dhanteras पूजा की विधि
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