भगवान् कृष्ण की द्वारका नगरी क्यों और कैसे डूबी ? | Dwarka nagri kaise doobi ?
नमस्कार दोस्तों, आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि भगवान कृष्ण की द्वारका नगरी समुद्र में कब, क्यों और कैसे डूब गई |
मित्रों द्वारका एक ऐसी प्राचीन नगरी है जिसमें कई द्वार थे और द्वार होने की वजह से ही इसका नाम द्वारका पड़ा |
दोस्तों अब यह प्रश्न उठता है कि जब भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु हुई थी तो उसके बाद आखिर ऐसा क्या हुआ जिससे कि द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई |
मित्रों आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि भगवान श्री कृष्ण की द्वारका नगरी कब क्यों और कैसे समुद्र में डूबी ?
![dwarka nagari kyun aur kaise doobi dwarka nagari kyun aur kaise doobi, dwarka nagari](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhtpNx-sGgV4__evqjRydysOkWRtWLLcXDtVZjSMspByyx-M1Mhj1AD1YQZ8YwXXpkNdTzPDNE22sDCKKHmZWulgiQDJYkwMTA8qwlcEhXTkBfJhMvJ76hoQyYGO_61jZQ9NNp4QhmCtw/w400-h225/bhagwaan+krishan+ki+dwarka+nagari+samudra+me+kaise+doobi.jpg) |
Dwarka Nagari kab aur kaise doobi ? |
द्वारका नगरी को भगवान् श्री कृष्ण की कर्मभूमि भी कहा जाता है | पुराणों के अनुसार श्री कृष्ण ने जब कंस का वध किया फिर जरासंध ने कृष्ण और यदुवंशियों का नामोनिशान मिटाने के बारे में सोचा और जैसे ही मौका मिलता वैसे ही जरासंध मथुरा और यादवों पर बार-बार आक्रमण करता रहा | फिर श्री कृष्ण ने नगरवासियों की सुरक्षा के लिए मथुरा छोड़ने का निर्णय लिया |
फिर मथुरा से निकल जाने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने द्वारका नगर की स्थापना की जो कि काफी विशाल और काफी सुसज्जित था | कहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण अपने कुल बंधुओं के साथ द्वारका में बहुत ही आराम से रहने लगे फिर 36 साल तक राज करने के बाद श्री कृष्ण की मृत्यु के बाद द्वारका नगरी समुद्र में समा गई |
Shree Krishna Janm katha
द्वारका नगरी समुद्र में डूबी इससे जुड़ी हुई दो कथाएं हैं :-
पहेली कथा है, महाभारत के समय में माता गांधारी के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण को दिया गया श्राप |
दूसरी कथा है , ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को दिया गया श्राप |
अब हम इन दोनों कथाओं के बारे में पूरे विस्तार से जानेंगे
महाभारत के समय में माता गांधारी के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण को दिया गया श्राप |
पहेली कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध में कौरवों पर विजय प्राप्त करने के पश्चात, जब युधिष्ठिर का हस्तिनापुर के राज महल में राजतिलक हो रहा था तब गांधारी ने भगवान् कृष्ण को श्राप दिया था क्योंकि गांधारी अपने सभी पुत्रों की मृत्यु का कारन कृष्ण को मानती थी | उन्होंने ने अपने श्राप में यदुवंशियों के विनाश के बात कही थी |
ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को दिया गया श्राप |
दूसरी कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के 36 वर्षों के पश्चात द्वारका में काफी तरह के अपशगुन होने लगे | तब एक दिन विश्वामित्र देव ऋषि नारद आदि गणों के साथ द्वारका नगरी आए | वहां पर यादवों के नव युवकों ने उनका मजाक उड़ाया और उस मजाक में उन्होंने श्री कृष्ण के पुत्र सांब को स्त्री के रूप में ऋषि मुनियों के पास ले गए |
उन्होंने उन ऋषि-मुनियों से बोला है कि यह स्त्री गर्भवती है आप बताइए कि इसके गर्व से क्या उत्पन्न होगा | नवयुवकों के ऐसा कहने के बाद फिर ऋषि मुनि ध्यान करने लगे और जब उन्हें पता चला के यह सब जिसे स्त्री बता रहे हैं वह वास्तव में एक पुरुष है तो उन ऋषि-मुनियों को बहुत क्रोध आया और उन्होंने उस युवकों से कहा कि तुम लोगों ने हमारा घोर अपमान किया है इसलिए श्री कृष्ण का यह पुत्र एक लोहे के मुसल को जन्म देगा जिससे तुम लोग अपने समस्त कुल का संघार करोगे और उस मूसल के प्रभाव से केवल श्री कृष्ण और बलराम ही बच पाएंगे |
ऋषि मुनियों के श्राप का असर यह हुआ कि सांब ने दूसरे ही दिन एक लोहे के मूसल को जन्म दिया और यह बात जब राजा उग्रसेन को पता चली तो उन्होंने यह मूसल चुराकर समुद्र में फिकवा दिया |
उसके बाद राजा उग्रसेन और श्री कृष्ण ने अपने राज्य में घोषणा करवा दी कि कोई भी अपने घर में मदिरा तैयार नहीं करेगा और अगर ऐसा करते हुए कोई भी व्यक्ति पकड़ा जाएगा तो उसे दंड दिया जाएगा |
यह घोषणा सुनकर द्वारका वासियों ने मदिरा नहीं बनाने का निश्चय किया किंतु फिर भी इस सब के बाद द्वारका में बहुत सारे अपशगुन होने लगे प्रतिदिन आंधी चलने लगे तूफान आने लगे | उस समय यदुवंशियों के पाप बढ़ने लगे | यह सब देखकर भगवान श्रीकृष्ण समझ गए कि माता गांधारी का श्राप सत्य होने वाला है |
फिर श्री कृष्ण ने यदुवंशियों को तीर्थ यात्रा पर जाने को कहा |
श्री कृष्ण की आज्ञा मानकर सभी राजवंशी समुद्र तट पर आकर प्रभास तीर्थ में निवास करने लगे |
अंधकवंशियों के हाथों प्रद्युनम का वध
प्रभास तीर्थ में रहते हुए एक दिन सात्यकि ने कृतवर्मा का मजाक उड़ाया और अनादर कर दिया और फिर कृतवर्मा ने भी कुछ ऐसे शब्द कहे जिससे कि सात्यकि को क्रोध आ गया और क्रोध के आवेश में उसने कृतवर्मा का वध कर दिया |
यह सब देख के अंधकवंशियों ने सात्यकि को घेरकर उस पर हमला कर दिया | यह सब देख कर श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न उसे बचाने पहुंचे फिर सात्यकि और प्रद्युनम अंधकवंशियों से लड़ते हुए मारे गए |
यह सब देख कर भगवान् कृष्ण को बहुत गुस्सा आया और फिर उन्होंने एक मुट्ठी एरका घास उखाड़ ली हाथ में आते ही वह घास वज्र के समान लोहे के मूसल बन गई | फिर जो कोई भी वह घास उखाड़ता वह मूसल में बदल जाती और उन मूसलों के प्रहार से प्राण निकल जाते थे |
उस समय सभी वीर एक-दूसरे का मूसल से वध करने लगे इस तरह यदुवंशी भी आपस में लड़ कर मरने लगे |
श्री कृष्ण के देखते ही देखते सांब चारुदेष्ण, अनिरुद्ध सभी मारे गए इस सबसे से क्रोधित होकर श्री कृष्ण ने बाकि बचे वीरों का भी वध कर दिया फिर केवल श्री कृष्ण के सारथि दारुक ही बचे |
अंत में श्री कृष्ण ने अपने सारथी दारुक से कहा कि तुम हस्तिनापुर जाओ और अर्जुन को पूरी घटना बताकर द्वारका ले आओ और दारुक ने ऐसा ही किया |
फिर श्री कृष्ण ने पूरी घटना अपने पिता वासुदेव जी को बताई और यदुवंशियों के संहार की बात जानकर उन्हें भी बहुत दुख हुआ श्री कृष्ण ने वासुदेव जी से कहा कि मैं दाऊ भैया (बलराम ) से मिलने जा रहा हूँ और तब तक आप अर्जुन के आने तक स्त्रियों कि रक्षा करें |
यह कहकर श्री कृष्ण बलराम से मिलने चल पड़े | बलराम जी समाधि में लीन थे और देखते ही देखते बलराम शेषनाग रूप में बदल गए और भगवान श्री कृष्ण से आज्ञा लेकर बैकुंठधाम वापस लौट गए|
श्री कृष्ण की मृत्यु
बलराम के देह त्यागने के बाद में श्री कृष्ण घूमते घूमते एक स्थान पर बैठ गए और गांधारी द्वारा दिए गए श्राप के बारे में विचार करने लगे फिर श्री कृष्ण ने अपनी इंद्रियों का संयमित किया और महायोगी अवस्था में पृथ्वी पर लेट गए |
जब भगवान श्रीकृष्ण समाधि में लीन थे उसी समय जरा नामक एक शिकारी ने हिरन समझ कर श्रीकृष्ण पर बाण चला दिया, बाण चलाने के बाद जब वह अपना शिकार पकड़ने के लिए आगे बढ़ा तो योग में स्थित भगवान श्रीकृष्ण को देख कर उसे अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ | तब कृष्ण ने उसे आश्वासन दिया और परमधाम चले गए |
इधर दारुक हस्तिनापुर पहुंचकर यदुवंशियों के संहार की पूरी घटना पांडवों को बता दी यह सुनकर पांडव बहुत दुखी हुए और फिर अर्जुन द्वारका के लिए चल दिए |
अर्जुन का द्वारका में आगमन
जब अर्जुन द्वारका पहुंचे तो वहां का हाल देख कर काफी दुखी हुए | द्वारका में श्री कृष्ण की रानियों को रोटा हुआ देख कर अर्जुन भी रोने लगे और भगवन कृष्ण को याद करने लगे | फिर वे वासुदेव जी से मिले और वासुदेव जी ने उन्हें कृष्ण भगवान् का सन्देश सुनाया और बताया की जल्द ही द्वारका समुद्र में डूब जायेगी
फिर अर्जुन ने मंत्रियों से कहा कि वे सभी नगरवासियों को इंद्रप्रस्थ ले जायेंगे क्यूंकि समुद्र बहुत जल्द द्वारका को डुबा देगा |
फिर वासुदेव जी ने भी प्राण त्याग दिए और फिर अर्जुन ने उनका अंतिम संस्कार किया | अर्जुन ने प्रभास तीर्थ में मारे गए सभी वीरों का अंतिम संस्कार किया |
फिर अर्जुन सभी नगरवासियों को लेकर इंद्रप्रस्थ चल दिए और उसके बाद द्वारका नगरी समुद्र में डूब गयी |
मित्रों इस तरह द्वारका नगरी समुद्र में डूबी थी |
अगर आपको यह कथा पसंद आयी है तो इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें |
यह भी पढ़ें :-
एक टिप्पणी भेजें
एक टिप्पणी भेजें