महाभारत युद्ध में बलराम ने भाग क्यों नहीं लिया था ?
नमस्कार मित्रों, आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताने जा रहे हैं कि बलराम ने महाभारत का युद्ध क्यों नहीं लड़ा अर्थात मेरे कहने का मतलब है कि बलराम जी महाभारत के युद्ध में शामिल क्यों नहीं हुए थे ? आज इसी के बारे में बताएंगे |
मित्रों, आप भी सोचिए कि आखिर क्यों बलराम जी ने अपने भाई कृष्ण भगवान के साथ महाभारत का युद्ध नहीं लड़ा ? ऐसी क्या वजह रही होगी और अगर बलराम जी कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ना चाहते थे तो उन्होंने कौरवों की तरफ से भी युद्ध नहीं लड़ा, ऐसा क्यों ?
बलराम ने महाभारत का युद्ध क्यों नहीं लड़ा ?
मित्रों, आपको यह तो पता ही होगा कि भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम जो शेषनाग के अवतार थे, कंस द्वारा देवकी की 6 संतानों के वध के बाद शेषनाग बलराम के रूप में देवकी की कोख से पैदा हुए और उनके जन्म से कुछ समय पहले ही वासुदेव की पहली पत्नी रोहिणी जी वासुदेव और देवकी से मिलने कारागार गई तथा उन्होंने अपनी योग शक्ति से बलराम को अपने गर्भ में सुरक्षित कर लिया |
मित्रों, वैसे बलराम जी को कौन नहीं जानता - सभी जानते हैं | भगवान कृष्ण जहां अपने शांत स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थे और वहीँ बलराम अपने क्रोध स्वभाव के लिए, वैसे भी बलराम शेषनाग के अवतार थे और नागवंशी क्रोधी स्वभाव के जाने जाते हैं | बलराम जी ने यदुवंशियों के संहार के बाद अपना देह का समुद्र तट पर त्याग दिया था और अपने धाम लौट गए थे |
बलराम की शक्ति जानते हुए जरासंध को बलराम ही अपने लायक प्रतिद्वंदी नजर आते थे अगर भगवान कृष्ण की योजना जरासंध का वध भीम द्वारा करवाना ना होता तो फिर बलराम ही जरासंध का वध कर देते | बलराम अत्यधिक बलशाली थे फिर भी उन्होंने महाभारत के युद्ध में ना लड़ने का निर्णय क्यों किया | इसकी वजह क्या थी ?
आखिर ऐसा क्या कारण था जिसकी वजह से बलराम युद्ध करने के स्थान पर तीर्थ यात्रा चले गए |
मित्रों, आपको यह तो पता ही होगा कि महाभारत के युद्ध में हर जगह के छोटे बड़े राजाओं ने भाग लिया | कौरवों के साथ श्री कृष्ण की नारायणी सेना सहित 11 अक्षौहिणी सेना थी वही पांडवों के पास केवल 8 अक्षौहिणी सेना थी और निशस्त्र भगवान् कृष्ण थे |
तो ऐसे में बलराम ने युद्ध ना करने का निर्णय लिया और तीर्थ यात्रा पर निकल गए और तो और उन्होंने भगवान कृष्ण को भी यह सुझाव दिया कि वे युद्ध में शामिल ना हो क्योंकि दोनों ही पक्ष हमारे संबंधी हैं और किसी एक का पक्ष लेना दूसरे के साथ अन्याय करना होगा दोनों ही पक्ष अधर्म कर रहे थे | अगर हम इसमें शामिल हुए तो वह भी अधर्म कहलाएगा और बलराम भैया दुर्योधन को वचन दे चुके थे कि कृष्ण युद्ध में शस्त्र नहीं उठाएंगे इसीलिए भगवान कृष्ण ने उनके वचन का मान रखते हुए युद्ध में बिना शस्त्र के भाग लिया और अर्जुन के सारथी बन गए |
भगवान कृष्ण ने बलराम को भी समझा दिया कि धर्म स्थापना के लिए युद्ध का होना बहुत ज्यादा आवश्यक है और रही बात संबंधों की तो एक पक्ष सेना को चुने और एक पक्ष मुझे चुन ले | जब दुर्योधन को यह पता चला कि कृष्ण भगवान युद्ध में शस्त्र नहीं उठाएंगे तो दुर्योधन ने सेना का ही चुनाव किया | लेकिन भगवान कृष्ण ने निशस्त्र ही पांडव सेना को विजय दिलवा दी | इस प्रकार उन्होंने बलराम के वचन का मान रखा और युद्ध पूरा किया |
मित्रों, एक प्रश्न धर्म का होता है और जहां धर्म होता था भगवान कृष्ण वहां खड़े हो जाते थे चाहे उनके सामने उनके अपने ही क्यों ना हो | मैं आपको बताना चाहूंगा कि ग्रंथों में एक घटना का वर्णन मिलता है कि जिसमें कि युद्ध से 1 दिन पूर्व बलराम जी पांडवों की छावनी में पहुंचे और उन्हें देख पांडव पक्ष में सभी लोग काफी प्रसन्न हुए और सभी पांडवों ने उनका स्वागत किया और सबका अभिवादन स्वीकार करते हुए बलराम युधिष्ठिर जी के पास बैठे |
सबको यह लग रहा था कि बलराम जी ने अपना निर्णय बदल लिया होगा | लेकिन बलराम बहुत ही दुखी मन से कहने लगे के इस युद्ध में मुझे कोई रुचि नहीं है | सभी लोग आपस में लड़कर मूर्खता कर रहे हैं और मेरे लिए पांडव और कौरव दोनों ही प्रिय हैं |इसलिए मैं युद्ध में भाग नहीं लूंगा, नहीं तो यह अन्याय होगा | भीम और दुर्योधन दोनों ही मुझसे गदा सीख चुके हैं |
दोनों ही मेरे अपने हैं और इन दोनों को आपस में लड़ते हुए देख कर मुझे अच्छा नहीं लगेगा | फिर बलराम जी बोले, इसलिए मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं यह कहे कर बलराम ने सब से विदा ली और तीर्थ यात्रा पर निकल गए | मित्रों यही कारण था कि जिसकी वजह से बलराम जी ने महाभारत के युद्ध में हिस्सा नहीं लिया था मित्रों अब तो आप समझ चुके होंगे कि महाभारत के युद्ध में बलराम ने भाग क्यों नहीं लिया था |
जय श्री कृष्णा ||
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