कर्ण की कहानी  | Karn ki kahani

नमस्कार मित्रों, आज के इस आर्टिकल में हम आपको महाभारत के एक मुख्य पात्र कर्ण के बारे में बताएंगे | 


कर्ण का जन्म | karn ka janm

शुरुआत करते हैं कर्ण के जन्म के विषय से - कर्ण के जन्म के विषय में कहा जाता है यह कुंती के कुँआरी अवस्था में पैदा हुए थे | कुंती की सेवा से प्रसन्न दुर्वासा ऋषि ने उन्हें एक मंत्र दिया था जिससे वे किसी का आह्वान करके पुत्र रत्न की प्राप्ति कर सकती थी | उत्सुकता वश और मन्त्र की सत्यता जांच करने के लिए कुंती ने सूर्य देव का आह्वान किया और जिसके फल स्वरुप कर्ण कुंती के गर्भ में आ गया | फिर कुंती की कुँआरी अवस्था में ही कर्ण कुण्डल और कवच के साथ पैदा हुआ |


Karn ki kahani
Karn ki kahani



 कुंती ने लोक लाज और समाज के भय के कारण कर्ण को एक टोकरी में रखकर नदी में बहा दिया | वह टोकरी सूत अधिरथ  और उनकी पत्नी राधा को मिली और उन्होंने उसे अपना बेटा मान कर उसका लालन-पालन किया | इसी वजह से कर्ण को सूत पुत्र तथा राधे कहा जाता है |


कर्ण की शिक्षा | karn ki shiksha 

कर्ण को शस्त्र विद्या की शिक्षा गुरु द्रोणाचार्य ने दी थी किन्तु कर्ण की उत्पत्ति के विषय में उन्हें संदेह होने की वजह से उन्होंने उसे ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना नहीं सिखाया | तब कर्ण परशुराम के पास गए और अपने को ब्राह्मण बताकर शस्त्र विद्या सीखने लगे | एक दिन किसी वजह से परशुराम को यह ज्ञात हो गया कि कर्ण ब्राह्मण नहीं है फिर परशुराम ने कर्ण को एक श्राप दिया कि जिस समय तुम्हें इस विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी उस समय तुम इस विद्या को भूल जाओगे |


कर्ण को श्राप | Karn ko shrap 

कर्ण को जीवन में दो श्राप मिले थे 

पहला श्राप इस प्रकार है कि एक समय कि बात है परशुराम कर्ण कि जंघा पर सर रखकर आराम कर रहे थे तभी थोड़े समय के बाद वहां एक बिच्छू आता है फिर कर्ण सोचता है कि अगर मैं बिच्छू को हटाने की कोशिश करता हूँ  तो गुरु की नींद भंग हो जाएगी  | वह उनकी नींद भंग नहीं करने देना चाहता था फिर उसने बिच्छू को हटाने के वजाये बिच्छू को डांक मारने दिया  और वह बिच्छू के डांक मारने का दर्द सहता रहा |

फिर जब गुरु परशुराम की नींद खुलती है और वे जब यह सब देखते हैं तो फिर उन्हें बहुत क्रोध आता है और वे कहते हैं कि इतनी सहनशीलता केवल एक क्षत्रिये में हो सकती हैं और तुम झूठ बोल कर मुझसे ये सब सीख रहे थे इसलिए मैं तुम्हे श्राप देता हूँ कि जब तुम्हे मेरे द्वारा सिखाई गयी विद्या की सबसे ज्यादा जरुरत होगी तो तुम उस समय ये विद्या भूल जाओगे | 

इतना सब हो जाने के बाद कर्ण गुरु परशुराम को समझाता है की वह खुद नहीं जनता कि वह किस वंश का है तब परशुराम को पछतावा होता है लेकिन दिया गया श्राप वापस नहीं लिया जा सकता तो फिर परशुराम अपना धनुष कर्ण को दे देते हैं |


फिर कुछ वर्षों के बाद 

कर्ण गलती से एक ब्राह्मण की गाय को मार देते हैं  फिर उस ब्राह्मण ने कर्ण को श्राप दिया था कि जिसे तुम मारना चाहते हो तुम उसी के हाथों मारे जाओगे  

इस प्रकार कर्ण को दो श्राप मिले थे |


कर्ण की दुर्योधन से मित्रता | Karn ki duryodhan se mitrta 

अगर हम बात करें दुर्योधन और कर्ण की मित्रता के बारे में मित्रों तो फिर आपको बताना चाहूंगा कि कर्ण शुरुआत से ही अर्जुन के प्रतिद्वंदी थे जिसकी वजह से उसकी दुर्योधन से मित्रता हो गई थी |


कर्ण का विवाह | Karn ka vivah 

एक बार द्रौपदी के स्वयंवर के लिए राजा गण राजा द्रुपद के यहां एकत्र हुए थे | द्रौपदी के स्वयंवर में एक प्रतियोगिता राखी गयी थी जिसके अनुसार जो भी राजा धनुष उठाकर मछली के  प्रतिबिम्ब को देख कर मछली की आँख में निशाना लगाएगा द्रौपदी का विवाह उसी से होगा | उस सभा में किसी ने भी उस धनुष को हिला तक नहीं पाया | लेकिन अर्जुन से पूर्व कर्ण ने उस धनुष को उठा लिया था पर द्रौपदी ने सूतपुत्र होने की वजह से उनसे विवाह करने से मना कर दिया था | 

इसकी वजह से कर्ण ने विशेष रूप से अपने आपको काफी अपमानित समझा |  कर्ण का विवाह पद्मावती नाम की कन्या से हुआ था

कर्ण का दानवीर स्वभाव  | Karn ka danveer swabhav

कर्ण ने पांचों पांडवों का वध करने का संकल्प लिया था पर माता कुंती के कहने पर उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा अर्जुन तक ही सीमित कर दी थी | कर्ण को दानवीर भी कहा जाता है उनकी दानवीर होने के काफी किस्से हैं  | कर्ण के इस दानवीर स्वभाव को देखकर इंद्र उनके पास उनका कवच और कुंडल मांगने गए थे फिर कर्ण ने उन्हें कवच और कुंडल दे दिए थे |


फिर इंद्र ने उन्हें एक बार प्रयोग करने के लिए अपनी एक अमोघ शक्ति दे दी थी | इससे किसी का भी वध किया जा सकता था | कर्ण उस शक्ति का प्रयोग अर्जुन पर करना चाहते थे किन्तु दुर्योधन के कहने पर उन्होंने उस शक्ति का प्रयोग भीम के पुत्र घटोत्कच पर किया था |


महाभारत युद्ध से पहले भगवान् कृष्ण कर्ण  के पास जाते हैं और उसे उसके जन्म की सच्चाई बताते हैं और कर्ण  को समझाते हैं कि उसे पांडवों यानी कि अपने भाइयों की तरफ से युद्ध लड़ना चाहिए | लेकिन कर्ण ने इसका प्रतिरोध करके अपनी सत्य निष्ठा और अपनी सच्ची मित्रता का परिचय दिया |


कर्ण का कुंती को वचन | Karn ka kunti ko vachan

युद्ध होने से पहले कुंती का मन व्याकुल हो उठा, वे नहीं चाहती थी कि कर्ण कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ें और कर्ण का पांडवों के साथ युद्ध हो | इसलिए वे कर्ण को समझाने के लिए कर्ण के पास गई जब कुंती कर्ण के पास गई तो कर्ण उनके सम्मान में खड़े हो गए और उनसे कहा कि आप यहां पहली बार आयी हैं तो इस राधे का सम्मान स्वीकार करें | फिर कुंती ने कर्ण से कहा कि तुम राधे नहीं हो मैं तुम्हारी मां हूं लोक लाज और समाज के भय के कारण मैंने तुम्हें त्याग दिया था |


 तुम पांडवों के बड़े भाई हो इसलिए तुम्हें कौरवों के साथ नहीं बल्कि अपने भाई पांडवों के साथ रहना चाहिए | मैं नहीं चाहती कि भाइयों में परस्पर युद्ध हो | मैं चाहती हूं कि तुम पांडवों के पक्ष में रहो और बड़े भाई होने के नाते राज्य के अधिकारी हो | फिर कुंती ने कहा कि मैं चाहती हूं कि तुम युद्ध जीत कर राजा बनो | तब कर्ण ने कहा माता आपने मुझे त्यागा था, क्षत्रियों के कुल में पैदा होने के बाद भी मैं सूत पुत्र कहलाता हूं | सूत पुत्र कहलाने के कारण द्रोणाचार्य ने मेरा गुरु बनना स्वीकार नहीं किया तथा दुर्योधन ही मेरे सच्चे मित्र हैं | मैं उनका उपकार और मित्रता नहीं भूल सकता किंतु आपका मेरे पास आना व्यर्थ नहीं जाएगा क्योंकि आज तक मेरे पास आया हुआ कोई भी इंसान खाली हाथ नहीं गया है |


 मैं आपको वचन देता हूं कि मैं अर्जुन के सिवाय आपके किसी भी पुत्र पर अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग नहीं करूंगा | मेरा और अर्जुन का युद्ध तो होना ही है और हम दोनों में से किसी एक की मृत्यु निश्चित है | मेरी प्रतिज्ञा है कि आप पांच पुत्रों की ही माता बनी रहेंगी |





कर्ण की मृत्यु | Karn ki mrityu

फिर महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोणाचार्य के मारे जाने के बाद युद्ध के १६वे  दिन कर्ण को कौरवों की सेना का सेनापति बनाया गया | अर्जुन को छोड़ कर उसने अन्य पांडवों को जीता किंतु कुंती के अनुरोध की वजह से उसने किसी का भी वध नहीं किया | युद्ध के १७वे  दिन कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धस जाता है फिर कर्ण अपना धनुष रखकर रथ के पहिये को निकालने लगता है | उसी समय भगवान कृष्ण अर्जुन से कर्ण का वध करने को कहते हैं | फिर अर्जुन कर्ण का वध कर देते हैं इस तरह एक महान धनुर्धर , दानवीर योद्धा की मृत्यु हो जाती है |


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