Navratri कथा, नवरात्रि क्यों मनाते हैं ? पूजा सामग्री  और पूजा विधि  

हेलो दोस्तों , हमारा देश भारत त्योहारों का देश है यहाँ पर समय समय पर काफी त्यौहार मनाये जाते हैं।  इन्हीं सभी त्योहारों में से एक त्यौहार है - Navratri | नवरात्रि भारत में मनाया जाने वाला हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है जो कि यहाँ भारत में बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है। 

दोस्तों क्या आप जानते हैं कि -

- नवरात्रि (Navratri) का क्या मतलब होता है ?
- नवरात्रि क्यों मनाते हैं | Navratri kyun manate hain ?
- नवरात्रि  व्रत कथा (नवरात्र व्रत की शुरुआत कहाँ से हुई - सुमति की कहानी )
- नवरात्रि साल में दो बार क्यों आती है ?
- नवरात्रि पूजा के लिए आवश्यक सामग्री कौन कौन सी है ?
- नवरात्रि पूजा की विधि क्या है ?

अगर दोस्तों आपको इन प्रश्नो के जवाब नहीं पता हैं तो आज के इस आर्टिकल में हम Navratri पर्व के बारे में आपको सारी जानकारी देंगे। 

Navratri का क्या मतलब होता है ?

नवरात्रि एक संस्कृत का शब्द है और इसका मतलब होता है नौ रातें  | नवरात्रि के इस पर्व में नौ रातों तक देवी के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है। 
नवरात्रि साल में दो बार आते हैं, एक चैत्र मास शुक्ल पक्ष को जिसे हम लोग चैत्र नवरात्रि कहते हैं जिसमे एक से नौ तारीख तक नवरात्रि व्रत रखे जाते हैं और दूसरा आश्विन मास शुक्ल पक्ष को जो शारदीय नवरात्रि कहलाते हैं जिसमे पहेली तारीख से नौ तारीख तक व्रत रखे जाते हैं। 
दोस्तों, Navratri के इस त्यौहार में हम देवी के नौ स्वरूपों की आराधना करते हैं।  देवी के वो नौ स्वरुप, इस प्रकार हैं -
  • शैलपुत्री
  • ब्रह्मचारिणी
  • चंद्रघंटा
  • कूष्माण्डा
  • स्कंदमाता
  • कात्यायनी
  • कालरात्रि
  • महागौरी
  • सिद्धिदात्री

दोस्तों, Navratri पर्व में हम इन नौ देवियों की पूजा-आराधना करते हैं। 


Happy Navratri



नवरात्रि क्यों मनाते हैं | Navratri kyun manate hain ?

 नवरात्रि क्यों मनाते हैं ? दोस्तों इस बारे में आपके मन में भी काफी बार ख्याल आया होगा आखिर हम नवरात्रि पर्व मनाते क्यों हैं ?  दोस्तों, नवरात्रि पर्व मनाने के पीछे काफी कथाएं प्रचलित हैं जिनमे प्रमुख दो कथाएं हैं और इन दो प्रमुख कथाओं के अलावा सुमति की कथा भी है। अब मैं आपको एक एक करके सभी कथाओं के बारे में बताऊंगा। 

नवरात्रि (Navratri) से जुड़ी प्रथम प्रमुख कथा 

 दोस्तों, यह बात उस समय की है जब भगवन श्रीराम और रावण के बीच युद्ध चल रहा था | तब ब्रह्मा जी ने भगवान श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी की उपासना कर उन्हें प्रसन्न करने को कहा।  जैसा ब्रह्मा जी ने कहा था तब भगवान श्रीराम ने उसी के अनुसार चंडी देवी को प्रसन्न करने के लिए एक हवन आयोजित किया उस हवन के लिए 108 दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था की गई थी जिससे कि हवन सही तरीके से पूर्ण हो जाए और चंडी देवी प्रसन्न हो जाएँ। 

वहीँ दूसरी तरफ रावण ने भी अमर होने के लिए चंडी पाठ चालू कर दिया और इस बात की खबर इन्द्र देव ने हनुमान द्वारा श्रीराम तक पहुचायी और भगवान् श्रीराम को सलाह दी कि हवन को सही समय पर पूर्ण करना चाहिए। 

वहीँ दूसरी तरफ रावण ने भगवान् श्रीराम के 108 दुर्लभ नीलकमल में से 1 नीलकमल अपनी शक्तियों द्वारा गायब कर दिया जिससे कि भगवान् श्रीराम का हवन पूर्ण न हो पाए। जब 1 नीलकमल कम हो गया तो भगवान श्रीराम का चंडी देवी को प्रसन्न करने का संकल्प टूटता नजर आ रहा था और इस बात का भी भय लग रहा था कि कहीं चंडी देवी नाराज न हो जाएँ और तुरंत दुर्लभ नीलकमल कि व्यवस्था कर पाना संभव  नहीं था।  

तभी प्रभु श्रीराम को याद आया कि लोग उन्हें कमलनयन नवकंच लोचन भी कहते हैं तो फिर उन्होंने चंडी देवी को प्रसन्न करने के संकल्प और हवन को पूर्ण करने के लिए अपना एक नेत्र अर्पित करने का मन बना लिया और फिर जैसे ही प्रभु श्रीराम ने अपनी आँख निकालने के लिए तीर निकला और अपनी आँख निकालने जा रहे थे तभी चंडी देवी प्रकट हो गयी और भगवान् राम का हाथ पकड़कर रोका और भगवान श्रीराम से कहा कि मैं प्रसन्न हूँ और उन्होंने फिर भगवान् श्रीराम को विजय होने का आशीर्वाद दिया। 

दूसरी तरफ रावण का भी चंडी पाठ कुछ ब्राह्मण कर रहे थे तो फिर हनुमान जी वहां पर एक ब्राह्मण बालक का रूप बदल कर पहुंच गए और वहां पर सेवा में जुट गए फिर वहां पर जब ब्राह्मणों ने हनुमानजी की निस्वार्थ सेवा देख कर उन्हें वरदान मांगने को कहा - फिर हनुमान जी ने उनसे आग्रह किया कि आप जो मंत्र बोल कर यज्ञ कर रहे हैं।  उस मंत्र में " ह " की जगह पर " क " उच्चारण करें  बस यही मेरी कामना है ऐसा हनुमान जी ने कहा। 

फिर ब्राह्मण हनुमान जी के रहस्य को समझ न सके और तथास्तु बोल कर इच्छापूर्ति का आशीर्वाद दे दिया।  मंत्र में एक शब्द था "भार्तिहरिणी" जिसका मतलब होता है भक्तों की पीरा हरने वाली पर ब्राह्मणों ने हनुमान जी को आशीर्वाद दिया था जिसके फलस्वरूप हरिणी की जगह " करिणी " जिसका मतलब होता है भक्तों को पीड़ित करने वाली  यह सब देख कर चंडी देवी रावण से काफी ज्यादा नाराज हो गयी और रावण को सर्वनाश का श्राप दे दिया।  हनुमान जी की वजह से रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल गयी। 
 भगवान श्रीराम की चंडी देवी को प्रसन्न करने की पूजा आराधना नौ दिन चली थी।  दोस्तों नवरात्रि की प्रमुख कथा यही है। 

Navratri से जुड़ी दूसरी प्रमुख कथा 

दोस्तों , Navratri से जुड़ी जो दूसरी प्रमुख कथा है वो इस प्रकार है।  बहुत समय पहले की बात है, एक महिषासुर नाम का राक्षस था उसका आधा  शरीर राक्षस का और आधा शरीर भैंसे का था। उसने कई वर्षों तक ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की।  उसकी तपस्या से ब्रह्मा जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने महिषासुर से कहा कि मांगो जो भी वरदान तुम्हे माँगना हो।  फिर महिषासुर ने ब्रह्मा जी से कहा कि हे प्रभु मुझे ऐसा वरदान दें कि इन तीनो लोकों में किसी भी देवता या मानव द्वारा मेरी मृत्यु न हो सके  तब ब्रह्मा जी ने कहा - तथास्तु ऐसा ही होगा। 

 ब्रह्मा जी से वरदान पाने के बाद महिषासुर बहुत ही ज्यादा अत्याचारी और घमंडी हो गया और फिर उसने देवताओं पर आक्रमण किया और देवताओं को हरा कर उनके क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया। सभी देवता महिषासुर के अत्याचार से परेशान हो चुके थे फिर सभी देवता मिलकर ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शंकर जी की शरण में गए। 

फिर सभी देवताओं ने मिलकर इस समस्या से निपटने का उपाय ढूंढ़ने का प्रयास किया। फिर ब्रह्मा जी , विष्णु जी , और शंकर भगवान ने मिलकर एक तेज प्रकाश पुंज से एक देवी का निर्माण किया। इसी देवी को सारी दुनिया आदिशक्ति माँ दुर्गा के नाम से जानती है। फिर सभी देवताओं ने माँ दुर्गा को सभी प्रकार के अस्त्र शास्त्र से सुसज्जित किया। शंख , चक्र , गदा , त्रिशूल , धनुष बाण  इत्यादि शस्त्रों को धारण कर माँ महिषासुर की नगरी की तरफ चल पड़ी। 

जब महिषासुर को उनके बारे में सूचना मिली तो वो उनसे मिलने के लिए लालायित हो उठा।  फिर महिषासुर ने देवी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। फिर माँ दुर्गा ने महिषासुर से कहा कि हे असुरराज तुम मुझसे युद्ध करो अगर तुमने मुझे युद्ध में जीत लिया तो मैं तुमसे विवाह कर लूंगी। फिर महिषासुर माँ दुर्गा से युद्ध के लिए तैयार हो गया।  फिर माँ दुर्गा और महिषासुर के बीच युद्ध प्रारम्भ हो गया। 

महिषासुर काम, क्रोध, लोभ, मोह के आधीन हो गया था उसका विवेक नष्ट हो चुका था। फिर माँ दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक घमाशान युद्ध चला।  युद्ध में अस्त्र शस्त्र का प्रहार जारी था।  माँ दुर्गा ने महिषासुर के हर अस्त्र शस्त्र के प्रहार को नाकाम कर दिया। फिर अंत में माँ दुर्गा ने महिषासुर का अंत कर दिया और देवताओं को भयमुक्त किया।  फिर देवताओं ने माँ दुर्गा पर पुष्पवर्षा की। तब से हिन्दुओं में नवरात्रि मानाने का त्यौहार चालू हुआ। 

Navratri vrat katha ( नवरात्रि व्रत की शुरुआत कहाँ से हुई ? - सुमति की कहानी)


दोस्तों अब मैं आपको यहाँ पर नवरात्रि  व्रत कथा के बारे में बताने जा रहा हूँ कि नवरात्री व्रत कब और कहाँ से प्रारम्भ हुए थे। बहुत समय पहले की बात है एक बार बृहस्पति जी ने ब्रह्मा जी से पूछा कि हम नवरात्रि व्रत क्यों मानते हैं। तब ब्रह्मा जी ने बृहस्पति जी से कहा कि मैं आपको उस इंसान की कहानी सुनाता हूँ जिससे ये  Navratri vrat की शुरुआत हुई थी। एक ब्राह्मण था उसकी एक बेटी थी जिसका नाम सुमति था वो दोनों माँ दुर्गा के बहुत बड़े भक्त थे।

 ब्राह्मण और उसकी बेटी साथ में मिलकर हर रोज माँ दुर्गा की पूजा करते थे।  एक दिन सुमति अपने दोस्तों के साथ खेलने में मगन हो गयी और वो माँ दुर्गा की पूजा करना भूल गयी।  यह सब देखकर ब्राह्मण को बहुत तेज गुस्सा आया और उन्होंने अपनी बेटी सुमति से कहा आज तुमने माँ दुर्गा की पूजा नहीं की इसीलिए मैं तुम्हारी शादी एक कोढ़ी और गरीब इंसान से करवा दूंगा। यह सब सुनकर सुमति ने अपने पिता से कहा - पिता जी आप जिससे चाहो उससे मेरी शादी करवा दो मगर मुझे मिलेगा तो वो ही जो मेरे भाग्य में होगा। 

यह सब सुनकर सुमति के पिता को और तेज गुस्सा आया और फिर उन्होंने सच में सुमति की शादी एक कोढ़ी से करवा दी। फिर उस ब्राह्मण ने अपनी बेटी से कहा कि जा अपने कर्मों के फल भोग और तेरे भाग्य में जो लिखा है उसके भरोसे जी के दिखा। यह सब सुनकर सुमति बहुत उदास हुई और अपने पति के साथ चली गयी। सुमति की यह दशा देख माँ भगवती का दिल पिघल गया और माँ भगवती सुमति के सामने प्रकट हुई और सुमति से कहा बेटी - कोई भी वरदान मांग लो।  - सुमति को यह सब थोड़ा अजीब लगा और सुमति ने माँ भगवती से कहा कि माँ मैंने ऐसा क्या किया है कि आप मुझे वरदान देने के लिए तैयार हो। 

तब माँ भगवती ने कहा बेटी मैं आदिशक्ति हूँ मैं तुम्हे वरदान इसलिए देना चाहती हूँ क्यूंकि तुमने अपने पिछले जन्म में अच्छे कर्म किये हैं। 

फिर उन्होंने सुमति को उसके पिछले जन्म की कहानी सुनाई कि सुमति पिछले जन्म में एक चोर की पत्नी थी। वो चोर एक बार चोरी करते हुए पकड़ा गया तो राजा और उसके सैनिकों ने दोनों पति पत्नी को जेल में डाल दिया।  अब जेल में वहां पर, न खाने को कुछ था और न पीने को कुछ था।  अब हुआ ऐसा जब दोनों पति पत्नी जेल में थे तब नवरात्रि चल रहे थे और अनजाने में दोनों पति पत्नी ने navratri में न कुछ खाया और न कुछ पिया और फिर इस तरह अनजाने में नवरात्रि के सारे व्रत पूरे हो गए। इसीलिए सुमति को वरदान मिला माँ भगवती से, फिर सुमति ने सोचा मैं माँ भगवती से क्या वरदान मांगू तो फिर सुमति ने माँ भगवती से वरदान माँगा की वे उसके पति को ठीक कर दें।  फिर माँ भगवती ने उसका वरदान उसे दे दिया और उसके पति को ठीक कर दिया और फिर वहां से नवरात्रि व्रत की शुरुआत हुई। 

Navratri  साल में दो बार क्यों आती है ?

दोस्तों यह बात तो सभी लोग जानते हैं की नवरात्रि  साल में दो बार आती है। क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है ?  दोस्तों नवरात्रि ( Navratri ) साल में दो बार आती है एक गर्मी की शुरुआत में और दूसरा सर्दी की शुरुआत में।  दोस्तों यही वो समय है जब मौसम हम पर बहुत ज्यादा असर  डालता है और इस समय फसल भी पकती है।  इस समय बीमारियां भी बढ़ जाती हैं आपने देखा होगा की इसी समय डॉक्टर्स के पास सबसे ज्यादा भीड़  होती है ।  

इसीलिए जो हमारे पूर्वज हैं उन्होंने धार्मिक अनुष्ठान के साथ 9  दिन व्रत का प्रावधान किया जिससे कि हमारे अंदर की सारी परेशानियां दूर हो जाएँगी क्यूंकि हम 9  दिन तक एक अच्छे तरीके से फलाहार करेंगे और हमारा शरीर फिर से सही हो जायेगा और इसके साथ साथ हम पूजा आराधना तथा धार्मिक अनुष्ठान करेंगे जिससे कि हमारा मन और हमारी आत्मा शुद्ध हो जाएगी। दोस्तों इसी वजह से यह समय देव शक्तियों की पूजा अर्चना करने का यह शुभ समय माना गया है।  इसलिए दोस्तों हम अपने मन और अपने शरीर का सही संतुलन बनाये रखने की लिए हम व्रत रख कर आदिशक्ति माँ दुर्गा की उपासना करते हैं। 

दोस्तों एक बार navratri को धर्म की अधर्म पर जीत के रूप में मनाते है और दूसरी बार इसे भगवान् राम के जन्म उत्सव के रूप में भी मनाते हैं जिसे राम नवमी कहते हैं। 
दोस्तों अगर आपके पास इसके अलावा कोई सुझाव या आपके अपने इस बारे में कोई विचार हो तो आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं। 

 Navratri puja | नवरात्रि पूजा के लिए आवश्यक सामग्री कौन कौन सी है ?

दोस्तों Navratri पूजा के लिए हमें कौन कौन सी सामग्री की आवश्यकता होती है  चलिए इस बारे में बात करते हैं। 
पूजा की थाली, गीली मिटटी, आम या पान के पत्ते, गुलाब या जासवंती के फूलों का हार, दो नारियल,  मिटटी का मटका, २ लाल नारंगी चुनरी, अगरबत्ती, जलपात्र, हल्दी, कुमकुम, अक्षत ( हल्दी और कुमकुम मिले चावल ), कपूर, सुपारी, मौली, ताम्बे का कलश, घी, जौ, रुई की बाती, अखंड घी का दिया, लाल कपड़ा, गंगा जल, चौकी, सिन्दूर, दक्षिणा, छुट्टे फूल, श्रृंगार का सामान, पूड़ी, इत्र, हलवा, खीर, पांच प्रकार के फल जो खट्टे न हों और मातारानी की तस्वीर चाहिए। 
दोस्तों नवरात्रि पूजा के लिए ये सभी सामग्री चाहिए।  

Navratri puja | नवरात्रि पूजा की विधि क्या है ?

नवरात्रि पूजा करने के लिए -
  • सबसे पहले स्नान करके पूजा के स्थान को गंगा जल से छींटे मारकर पवित्र कर लें। 
  • फिर पूजा स्थान पर चौकी रख कर उस पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर अक्षत से नौ कोने बनायें बीच से शुरू करते हुए बहार की तरफ। 
  • फिर भगवती देवी की प्रतिमा रख कर प्रतिमा के सामने जल का कलश रखें ।  देवी पुराण के अनुसार कलश को ही नौ देवियों के रूप मन जाता है। इसलिए नवरात्रि में कलश की पूजा की जाती है। 
  • फिर कलश पर मौली बाँध कर उसमे थोड़ा गंगा जल डालें, एक सुपारी, हल्दी, चावल और सिक्का डालें  और फिर आम या पान के पत्ते सजा कर कलश पर रखें। 
  • फिर एक नारियल लें और उस पर मौली बांधकर उस नारियल को उन आम के पत्तों पर सजा कर रख दें। 
  • अब एक घी का अखंड दीपक प्रतिमा के दायीं यानि right side पर रखें।  ( दिये को अभी जलाना नहीं है। ) और थाली, पूजा सामग्री पूजा के स्थान के पास ही रखें। 
  • सबसे पहले आसन ग्रहण करें और आचमन करें  फिर बाएं हाथ से जल लेकर दाएं  हाथ में डाल कर दोनों हाथों को शुद्ध करें। 
  • फिर  " ॐ दुर्गा देवयाय नमः " बोल कर तीन बार जल पियें | इसके बाद फिर से हाथ धो लें। 
  • फिर अपने आप को तिलक लगा कर अपने परिवार वालों को भी तिलक लगाएं और अखंड घी के दीपक को जला दें। 
  • याद रखें यह दीपक 9 दिन तक बुझना नहीं चाहिए और कलश अपनी जगह से हिलना नहीं चाहिए |
  •  हाथ में पुष्प और चावल रखें और संकल्प लें, संकल्प लेकर मां के सामने पुष्प और चावल छोड़ दें |
  • अब फूल से जल लें और जल का छिड़काव प्रतिमा और कलश पर करें उसके बाद हल्दी, कुमकुम से दुर्गा मां की प्रतिमा पर तिलक करें और कलश पर भी तिलक करें |
  • इसके बाद अक्षत को प्रतिमा के ऊपर छोड़ कर और फिर कलश पर भी अर्पित करें | आप एक चुनरी माता की प्रतिमा पर चढ़ाएं और कलश पर रखें नारियल पर भी चुनरी चढ़ाएं तथा कलश पर छुट्टे फूल अर्पित करें और माता रानी की प्रतिमा को हार पहनाएं  |
  • इसके बाद श्रृंगार का सामान माता के चरणों में रख दें और सुहागिन महिलाएं माता को श्रंगार चढ़ाकर अपने सुहाग की रक्षा के लिए प्रार्थना करें |
  • अब फूल द्वारा माता की प्रतिमा पर और कलश पर इत्र छोड़ें  और फिर अगरबत्ती माता को दिखा कर, घर में बने हुए प्रसाद को माता को दिखाकर चौकी के पास रख दें |
  • अब पांच प्रकार के फल माता रानी को चढ़ाएं तथा नारियल और दक्षिणा माता की प्रतिमा के पास रख दें और मिट्टी का छोटा मटका लेकर उसमें मिट्टी डालें और जौं को बो दें |
  • फिर मटके पर शुद्ध जल डालें और मटके पर मौली बांधकर माता की प्रतिमा के बाएं तरफ रख दें और मटके पर हल्दी कुमकुम का टीका लगा दे अब वही टीका अपनी मांग में लगाएं थोड़े से छुट्टे फूल मटके पर अर्पित करें |
  • अब दोनों हाथों में फूल और अक्षत लेकर दुर्गा माता से प्रार्थना करें कि हमसे इस पूजा विधि में जो कोई गलती हो गई हो तो हमें क्षमा करें |
  • फिर तीन बार ओम दुर्गा देवयाय नमः मंत्र का उच्चारण करें और माता के चरणों में फूल और अक्षत छोड़ दें |
  • अब दुर्गा मां की आरती करें कपूर और दीपक जलाकर आरती के बाद अपने परिवार को आरती दें और खुद भी आरती लें फिर आरती की थाली मां के पास रख दें तथा एक चम्मच पानी लेकर आरती के ऊपर से घुमाएं और नीचे छोड़ दें |
  • अब अपने परिवार को प्रसाद दें यदि आपने पहले और आखिरी दिन का व्रत संकल्प लिया है तो आप प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं और यदि आपने 9 दिन का व्रत संकल्प लिया है तो आप प्रसाद व्रत के समाप्ति के बाद ही ग्रहण करें |
  •  जिन महिलाओं ने 9 दिन का व्रत संकल्प लिया है वह माता के नौ रूप की पूजा दिन के हिसाब से करें व्रत रखने वाली महिलाएं प्रतिदिन फूलों का हार, चुनरी, फूल, अक्षत, प्रसाद, फल और अगरबत्ती माता को फिर से चढ़ाकर आरती करें और यदि हो सके तो दुर्गा चालीसा का पाठ करें |
                      Navratri पूरे होने पर कलश में रखें पानी के छींटे पूरे घर में मारें | ध्यान रहे माता को हर दिन अलग रंग की चुनरी चढ़ती है | 

जो इस प्रकार है  -

----  शैलपुत्री - लाल नारंगी
----  ब्रह्मचारिणी - पीला
----  चंद्रघंटा-सफेद 
----  कुष्मांडा-भूरा 
----  स्कंदमाता-गुलाबी
----  कात्यानी-हरा
----  कालरात्रि-आसमानी या ग्रे
----  महागौरी-नारंगी
----  सिद्धिदात्री-मेहरून या गहरा लाल |

                अपने परिवार के रीति रिवाज के हिसाब से कन्या पूजन अष्टमी या नवमी को किया जाता है | कन्या पूजन  navratri vrat का अहम हिस्सा माना गया है इस पूजन के लिए 10 साल तक की 9 लड़कियों की जरूरत होती है जिसमें महिलाएं मां जगदंबा के सभी नौ रूपों को याद करते हुए घर में आए सभी कन्याओं के पैर धोती हैं उनके हाथ में मौली बांधकर माथे पर बिंदी लगाती हैं | उनको हलवा पूड़ी और चने खाने के लिए देती हैं तथा कुछ तोहफे या  रुपए भी देती हैं | फिर जय माता दी कहकर लड़कियों के पैर छूकर उन लड़कियों के जाने के बाद खुद और अपने परिवार के साथ भोजन उसी जगह पर करती हैं जहां लड़कियों को भोजन कराते हैं |

 दोस्तों यह है  navratri की पूजा विधि

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जय माता दी 

Happy Navratri 2020



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