क्या बुरा बनने के लिए बुरा काम करना ज़रूरी है?
रात का अंधेरा घना हो चुका था। सड़कें सुनसान थीं। इक्का-दुक्का गाड़ियाँ तेज़ रफ्तार से निकल रही थीं, लेकिन पैदल चलने वालों के लिए यह रास्ता डरावना था। लैंपपोस्ट की हल्की रोशनी में मैंने देखा—एक लड़की अकेले तेज़ी से चल रही थी। उसकी चाल में घबराहट थी, बार-बार पीछे मुड़कर देख रही थी, जैसे किसी अनहोनी का डर हो।
मैं अपनी गाड़ी धीमी करते हुए उसके पास रुका। खिड़की का शीशा थोड़ा नीचे किया और नरम लहजे में कहा,
"अगर आपको बुरा न लगे तो मैं आपको घर छोड़ सकता हूँ।"
वो थोड़ी झिझकी, उसकी आँखों में संकोच था।
"अरे नहीं, मैं चली जाऊंगी…" उसने जवाब दिया, लेकिन उसके चेहरे पर चिंता साफ़ झलक रही थी।
मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
"आप असुरक्षित महसूस कर रही हैं, अगर चाहें तो मैं आपको आपके घर के बाहर तक छोड़ सकता हूँ।"
थोड़ी देर सोचने के बाद उसने हामी भरी और धीरे से गाड़ी में बैठ गई। रास्ते भर वो चुप रही, लेकिन जब मैं उसके घर के बाहर रुका, तो उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
"थैंक यू।"
मैंने राहत की साँस ली। किसी की मदद करना हमेशा अच्छा लगता है। लेकिन मुझे क्या पता था कि यह छोटा-सा अच्छा काम मेरे लिए सवाल बन जाएगा…
अच्छे काम की कीमत
यह अकेली घटना नहीं थी। पिछले कुछ महीनों में मैंने ऐसी कई लड़कियों की मदद की थी, बिना किसी स्वार्थ के, बस इंसानियत के नाते। लेकिन शायद यह समाज इतनी सीधी बातें समझने के लिए बना ही नहीं।
1. पहली लड़की – उसे पढ़ाई में दिक्कत हो रही थी। घर की स्थिति अच्छी नहीं थी, इसलिए मैंने उसे पढ़ाया और किताबें खरीदकर दीं।
2. दूसरी लड़की – उसकी आर्थिक हालत बहुत खराब थी। जब उसने मदद माँगी, तो मैंने कुछ पैसे दिए ताकि वो अपनी ज़रूरतें पूरी कर सके।
3. तीसरी लड़की – वो लड़की अपनी नौकरी से देर रात लौट रही थी। रास्ता सुनसान था, और डरावना भी। मैंने उसे घर छोड़ दिया, ताकि वो सुरक्षित पहुँच सके।
4. चौथी लड़की – उसके कॉलेज की फीस भरने के लिए पैसे कम थे। मैंने उसकी मदद कर दी।
मैंने कभी नहीं सोचा था कि इन नेकियों की वजह से मेरे इरादों पर शक किया जाएगा। लेकिन समाज ने मेरा नज़रिया बदल दिया।
जब मदद भी शक बन जाए…
धीरे-धीरे लोग बातें करने लगे
"ये लड़कियों की इतनी मदद क्यों कर रहा है?"
"ज़रूर इसके पीछे कोई गलत इरादा होगा!"
"शायद यह लड़कियों को फँसाने की कोशिश कर रहा है!"
और फिर सबसे बड़ा झटका तब लगा जब इन चारों लड़कियों ने एक-दूसरे से मेरी मदद की बात की—
"उसने मेरी भी मदद की थी!"
"ओह, तो उसने मेरी भी!"
"क्या पता इसके पीछे इसका कोई और इरादा हो?"
जो लोग पहले मेरी दरियादिली के लिए शुक्रगुज़ार थे, वही अब मुझ पर उँगली उठा रहे थे।
मेरे दिल में सवाल उठा—
"क्या बुरा बनने के लिए बुरा काम करना ज़रूरी है?"
या फिर
"कभी-कभी अच्छे काम भी हमें बुरा बना सकते हैं?"
ये समाज आखिर जा कहाँ रहा है?
हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जहाँ अगर कोई किसी की मदद करे, तो उस पर शक किया जाता है।
क्या ये समाज सच में इतना गिर चुका है कि बिना मतलब की मदद करने वाले लोग संदेहास्पद लगने लगे हैं?
अगर यही चलता रहा, तो क्या वो दिन दूर है जब…
कोई बूढ़ा सड़क पर गिरेगा, लेकिन कोई उसे उठाने नहीं जाएगा?
कोई लड़की अकेले फँस जाएगी, लेकिन कोई उसकी मदद नहीं करेगा?
कोई बच्चा भूखा होगा, लेकिन लोग उसे खाना देने से डरेंगे?
क्या हम सच में एक ऐसी दुनिया बना रहे हैं जहाँ अच्छाई को भी गलत समझा जाएगा?
अब आप बताइए...
क्या मैं गलत था?
क्या सच में आज के दौर में बिना स्वार्थ के मदद करने वालों को गलत समझा जाता है?
क्या हमें अपने नज़रिए को बदलने की ज़रूरत है ?
आपकी राय क्या है? नीचे कमेंट में ज़रूर बताइए।
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