एक प्यार ऐसा भी | Real Life Story


कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है जहाँ रास्ते भी होते हैं, रुकावटें भी… मगर सही क्या है और गलत क्या, ये समझना बहुत मुश्किल हो जाता है।


आरव, एक साधारण सा इंसान, एक बड़ी कंपनी में काम करता था। शादीशुदा था, ज़िम्मेदारियों में उलझा हुआ, लेकिन दिल से सच्चा और शांत स्वभाव का। उसकी दुनिया सादी थी, मगर ठहरी हुई थी। उसी कंपनी में एक लड़की थी – आरोही।


आरोही कंपनी के मालिक की बेटी थी। घमंडी, गुस्सैल, अपने आप में मस्त। उसे लगता था कि दुनिया में सब उसके नीचे हैं। वो अपने कर्मचारियों पर चीखती, चिल्लाती और उन्हें नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ती।


आरव उसे देखता तो सोचता – "पता नहीं कैसे लोग होते हैं… इतनी बदतमीज़, इतनी बिगड़ी हुई!"


उन दोनों की अक्सर कहासुनी हो जाती थी, बहस होती थी और फिर दोनों अपने-अपने काम में लग जाते थे।



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Ek Pyar aisa bhi - Real Life Story




फिर एक दिन आरव ने महसूस किया कि आरोही कई दिनों से ऑफिस नहीं आई। कुछ अजीब सी कमी महसूस हो रही थी। एक दिन कैन्टीन में उसकी नज़र आरोही पर पड़ी – वो अपनी दोस्त नेहा के साथ बैठी थी, जो आरव की भी दोस्त थी।


जब आरव की नज़र आरोही के चेहरे पर गई, तो उसे वहाँ चोट के निशान दिखे। आरव से रहा नहीं गया। वो गया और धीरे से पूछा – "क्या हुआ आरोही? ये निशान कैसे आए?"

आरोही कुछ कहे बिना वहाँ से उठ कर चली गई।


आरव ने नेहा से पूछा, तो उसने बस इतना कहा – "ये फैमिली मैटर है।" बस, और कुछ नहीं।


उस दिन के बाद से आरव की नज़रें आरोही को वैसे नहीं देख पाईं जैसी पहले देखा करता था। अब उसे उसके गुस्से के पीछे छुपी मासूमियत दिखने लगी। अब जो आरव उसे ‘बिगड़ी हुई लड़की’ समझता था, वही आरोही उसे बहुत मासूम लगने लगी।


आरोही कभी-कभी आरव से पूछती – "मुझे लगता है मेरी ज़िंदगी कभी ठीक नहीं होगी, क्या सच में सब कुछ खत्म हो गया है?"


आरव बस मुस्कुराकर कहता –

"मुझे नहीं पता तुम्हारी ज़िंदगी कैसी होगी… लेकिन मैं इतना ज़रूर जानता हूँ कि मैं तुम्हें टूटते हुए नहीं देख सकता।"


धीरे-धीरे दोनों के बीच एक अलग-सी समझ बनने लगी थी। एक रात की बात है – रात के लगभग 11 बजे आरव रेलवे स्टेशन पर अपने रिश्तेदार को लेने गया था। तभी आरोही का मैसेज आया:


"क्या कर रहे हो?"

आरव ने लिखा – "तुम्हें याद कर रहा हूँ..."

आरोही ने लिखा – "मुझे नहीं, अपनी पत्नी को याद करो!"


आरव ने जो जवाब दिया, वो आरोही की आत्मा तक पहुँच गया:


"तुम मेरी ज़िंदगी की वो राधा बन चुकी हो जिसे मैं कभी पा नहीं सकता… और कभी भुला भी नहीं सकता।"


बस… अगली ही पल… आरोही ने उसे ब्लॉक कर दिया।


अब दोनों ऑफिस में मिलते थे, लेकिन कोई बातचीत नहीं होती। फिर कंपनी की ओर से एक ट्रिप प्लान हुई। सभी जा रहे थे – आरव भी और आरोही भी।


ट्रिप के दौरान किसी बात पर आरोही रोने लगी। आरव से ये देखा नहीं गया। वो उसके पास गया, उसे चुप कराने की कोशिश की। पर उसके आँसू... आरव की आत्मा को झकझोर गए। उसे एहसास हुआ कि उसके दिल में आरोही के लिए कुछ बहुत गहरा है… लेकिन वो भी जानता था कि वो शादीशुदा है।


उसे समझ आ गया था कि मोहब्बत सिर्फ पाने का नाम नहीं है।


उसने राधा, कृष्ण के प्रेम को पढ़ना शुरू किया।

उसने एक दिन आरोही से कहा:


"मैं किसी गलत रास्ते पर नहीं जाना चाहता… न तुम्हें तकलीफ देना चाहता हूँ, न किसी और  को। लेकिन एक दोस्त, एक हमदर्द के रूप में मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा… हर मुस्कान में, हर आँसू में। तुम्हारी हर तकलीफ का हल बनकर।"


अब जब भी आरव, आरोही को मुस्कुराते हुए देखता – तो उसके चेहरे पर सुकून होता।

और जब कभी वो उदास होती – तो आरव किसी फ़रिश्ते की तरह उसकी परेशानी हल करने पहुँच जाता।


ये कहानी थी एक ऐसे प्यार की, जिसमें हक़ नहीं था… मगर साथ था।

जिसमें जुबां से इज़हार नहीं था… मगर दिल से फ़रियाद थी।

जिसमें मोहब्बत थी… लेकिन मोह नहीं।


उसके बाद आरव  — आरोही की हर मुसीबत का हल, हर आँसू की पहली मुस्कान बन गया।


एक प्यार जो मोह नहीं था, समर्पण था।

एक प्यार जिसमें खुशी देना था, पाना नहीं।

एक प्यार जिसमें 'उसकी ख़ुशी' ही उसकी पूरी दुनिया थी।


आरव जैसे लोग हमें याद दिलाते हैं –

प्यार सिर्फ पाना नहीं होता,

कभी-कभी बिना किसी हक़ के भी,

किसी के लिए हर वक़्त दुआ बन जाना ही

"एक प्यार ऐसा भी" होता है...


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समाज से सवाल:


1. क्या हर मोहब्बत का अंजाम साथ होना ही होता है?



2. क्या शादी के बाद किसी की मासूमियत को महसूस करना पाप है?



3. क्या एक इंसान, एक और इंसान की तकलीफ का सहारा बन सकता है – बिना किसी लालच के?


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कभी-कभी मोहब्बत वो होती है… जो मिलकर भी अधूरी रह जाती है…

मगर अपनी अधूरी कहानी में भी किसी को जीना सिखा देती है।


यही है – "एक प्यार ऐसा भी…"