भगवान का तोहफा - जिसे मैंने नजरअंदाज किया | Real Life Story

कभी-कभी हमारी ज़िंदगी में ऐसे लोग आते हैं, जो बिना किसी स्वार्थ के हमारी मदद करते हैं। वे हमारे हर छोटे-बड़े मुश्किल हालात में साथ खड़े रहते हैं, बिना मांगे ही हमारी परेशानी का हल निकाल देते हैं। 


लेकिन अक्सर हम उनकी कद्र नहीं कर पाते, और जब वे हमारी ज़िंदगी से चले जाते हैं, तब हमें उनकी अहमियत का एहसास होता है।


ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ। 

यह कहानी मेरी है, 
एक ऐसे इंसान की, जो अपनी ही दुनिया में खोया हुआ था और जिसे इस बात का अहसास ही नहीं था कि भगवान ने उसकी मदद के लिए एक फ़रिश्ता भेजा था।

एक नई शुरुआत


मैंने अपनी नौकरी एक नई कंपनी में शुरू की थी। माहौल नया था, लोग नए थे और काम का दबाव भी काफी ज़्यादा था। मैं हर वक्त काम के तनाव में डूबा रहता था, कभी फाइल्स में उलझा होता, तो कभी क्लाइंट्स की डेडलाइन्स को पूरा करने में लगा रहता।


इसी दौरान मेरी मुलाकात सिया से हुई। वह मेरी टीम में थी, लेकिन मुझसे एक साल पहले से काम कर रही थी। पहली मुलाकात में ही वह मुझे समझदार और मिलनसार लगी। उसने मुझे कंपनी के माहौल को समझने में मदद की, हर छोटी-बड़ी बात बताई और जब भी मुझे कोई दिक्कत होती, वह बिना कहे मेरी सहायता कर देती।



Bhagwan ka Tohfa - jise maine najarandaj kiya
Real Life Story - Bhagwan Ka Tohfa




धीरे-धीरे मैं सिया के साथ काफ़ी सहज महसूस करने लगा। वह सिर्फ़ मेरी सहकर्मी नहीं, बल्कि मेरी सबसे अच्छी दोस्त बन गई। जब भी मुझे कोई समस्या होती, वह बिना मांगे उसका हल निकाल देती। कभी मेरी रिपोर्ट्स सही कर देती, कभी मेरे लिए बॉस से बात कर लेती, और कभी-कभी तो मेरी छोटी-छोटी ज़रूरतों का भी ख्याल रखती—जैसे कि लंच के समय यह पूछ लेना कि मैंने खाना खाया या नहीं।

बिना क़दर किए मैंने  उसे खो दिया


शुरुआत में मैं उसकी मौजूदगी को एक वरदान की तरह मानता था। लेकिन धीरे-धीरे मैं इस आदत में इतना रम गया कि मुझे लगने लगा कि यह सब तो वैसे ही होना चाहिए। मैंने उसे "for granted" लेना शुरू कर दिया। मैं उसकी मदद को उसका कर्तव्य समझने लगा, ना कि एक नेमत।

एक दिन ऑफिस में मुझसे  एक बहुत बड़ी गलती हो गई, और मुझे बहुत डांट पड़ी। उस दिन भी सिया ने मेरी मदद करने की कोशिश की, लेकिन मैं गुस्से में था। 


मैंने उससे गुस्से में कहा, " मुझे तुम्हारी मदद की ज़रूरत नहीं है, मैं खुद सब संभाल सकता हूँ ! "


उसने कोई शिकायत नहीं की, बस हल्की मुस्कान दी और धीरे-धीरे मुझसे दूर होने लगी। अब वह मेरी मदद करने की कोशिश नहीं करती थी, और मैं भी अपनी ज़िंदगी में इतना व्यस्त था कि मुझे यह महसूस ही नहीं हुआ कि मैंने क्या खो दिया।


कुछ महीनों बाद, जब एक बार फिर मुझे किसी बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा, तब मैंने महसूस किया कि अब कोई नहीं है जो बिना कहे मेरी मदद कर दे। अब मुझे हर छोटी चीज़ के लिए खुद ही जूझना पड़ता था।


सिया अब भी ऑफिस में थी, लेकिन अब वह पहले जैसी नहीं थी। वह अपनी दुनिया में व्यस्त थी, और मैंने उसे खो दिया था।


उस दिन मुझे यह एहसास हुआ कि भगवान हमारी मदद के लिए हमेशा किसी को न किसी को भेजते हैं, लेकिन हम ही अपने अहंकार और लापरवाही में उनकी कद्र नहीं कर पाते। भगवान ने मुझे सिया के रूप में एक मददगार दोस्त दिया था, लेकिन मैंने उसे हल्के में लिया और उसे खो दिया।

धीरे-धीरे दूर होती सिया


अब वह मुझसे कम बातें करने लगी। पहले जहाँ वह बिना कहे मेरी मदद कर देती थी, अब वह बस दूर से देखती और चुपचाप अपने काम में लगी रहती।


अगर मुझे कोई दिक्कत होती, तो पहले मैं बस उसकी तरफ देखता था और वह समझ जाती थी कि मुझे मदद चाहिए। लेकिन अब, जब मैं उसकी तरफ देखता, तो वह सिर झुका लेती, जैसे कि उसे कुछ महसूस ही न हुआ हो।


धीरे-धीरे मुझे एहसास हुआ कि मैंने उसे बहुत तकलीफ दी है। लेकिन तब भी मैं अपनी गलती मानने के लिए तैयार नहीं था।


फिर एक दिन, मैं ऑफिस पहुँचा और देखा कि उसकी सीट खाली थी। मैंने सोचा कि शायद वह बीमार होगी या किसी काम से छुट्टी पर गई होगी। लेकिन जब अगले दिन भी वह नहीं आई, तो मुझसे रहा नहीं गया।


मैंने टीम लीड से पूछा,

"सिया कहाँ है? दो दिन से दिख नहीं रही?"


उसका जवाब सुनकर मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई।


"अरे, तुम्हें नहीं पता? 


उसने कंपनी छोड़ दी। उसने रिजाइन कर दिया और अब किसी दूसरी जगह जॉइन कर लिया है। "


मैं सन्न रह गया। बिना मुझे बताए, बिना एक अलविदा कहे, वह चली गई।


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जब एहसास हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी


उस दिन पहली बार मुझे उसकी गैरमौजूदगी का एहसास हुआ। जब मुझे किसी प्रोजेक्ट पर दिक्कत आई, तो कोई नहीं था जो बिना कहे मेरी मदद करे। जब मुझे रिपोर्ट में गलती मिली, तो उसे ठीक करने वाला कोई नहीं था।

 
जब लंच ब्रेक में मैं अकेला बैठा था, तो मुझे एहसास हुआ कि सिया ही थी जो हर दिन यह पूछती थी, "तुमने खाना खा लिया ?"


मुझे समझ आ गया था कि मैंने क्या खो दिया है।


भगवान हमारी ज़िंदगी में कुछ खास लोगों को भेजते हैं, जो बिना किसी स्वार्थ के हमारी मदद करते हैं। लेकिन हम ही अपनी लापरवाही और अहंकार में उन्हें दूर कर देते हैं।


अगर आपकी ज़िंदगी में भी कोई ऐसा इंसान है, जो आपकी मदद करता है, आपका ख्याल रखता है, तो उसे हल्के में मत लीजिए। क्योंकि अगर एक बार वह चला गया, तो शायद फिर कभी लौटकर न आए।



अगर आपकी ज़िंदगी में भी कोई ऐसा इंसान है, जो निस्वार्थ रूप से आपकी मदद करता है, तो उसे हल्के में मत लीजिए। वह भगवान का भेजा हुआ तोहफ़ा है। उसकी कद्र करें, क्योंकि एक बार अगर वह चला गया, तो फिर लौटकर नहीं आएगा।


" भगवान का हर तोहफ़ा अनमोल होता है—बस हमें उसे पहचानने की देर होती है। "


 "ज़िंदगी में जब भी कोई बिना स्वार्थ आपकी मदद करे, आपका ख्याल रखे, तो उसे हल्के में मत लीजिए। भगवान हर किसी की मदद के लिए किसी न किसी को भेजते हैं, लेकिन हम अक्सर उनकी अहमियत तब समझते हैं जब वे हमारी ज़िंदगी से चले जाते हैं। 

किसी को खोने से पहले उसकी कद्र करना सीखें, क्योंकि कुछ लोग वापस नहीं आते!"


" जो बिना बोले हर बात समझ जाए,
जो हर मुश्किल में साथ निभाए।

भगवान का भेजा वही तोहफ़ा होता है,
पर हम उसे वक्त रहते कहाँ अपनाए?

जब तक रहा, उसकी कद्र ना की,
अब जो गया, तो यादें रह गईं।

ज़िंदगी सिखा गई एक सीख यही,
जो अपनों सा लगे, उसकी कदर कभी ना भूलें। "