अनजान मदद | Real Life Story

हमारी ज़िंदगी में कभी-कभी ऐसे लम्हे आते हैं, जब कोई अनजान शख्स हमारी मदद करके अचानक से गायब हो जाता है। ना नाम पता चलता है, ना कोई पहचान। बस एक पल के लिए वो हमारी मुश्किल आसान कर जाता है और फिर भीड़ में कहीं खो जाता है।


क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है?


आज की कहानी इसी पर आधारित है— "अनजान मदद"


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रात के 12 बज चुके थे। मैं नोएडा से अपने घर, फर्रुखाबाद, जा रहा था। सफर लंबा था, लेकिन घर जाने की खुशी से दिल भरा हुआ था। सब कुछ सही चल रहा था, जब तक कि बस वाले ने अचानक घोषणा नहीं कर दी— "बस अब यहीं तक जाएगी।"


मैं चौंका। "पर ये अलीगंज क्यों रोक दिया?" मैंने बस कंडक्टर से पूछा।


"आगे सवारी नहीं है, साहब। रात भी हो चुकी है। अब कोई और बस पकड़ लो।"


मुझे समझ नहीं आया कि अब क्या करूं। बाज़ार बंद हो चुका था, चारों तरफ सन्नाटा था। बस के बाकी यात्री भी इंतज़ार कर रहे थे कि कोई दूसरी बस आए, लेकिन मुश्किल ये थी कि बसें तो दिख रही थीं, पर कोई रुक नहीं रही थी। 


ठंड और अंधेरे के बीच मैं सोचने लगा, "अगर यहां से कोई बस न मिली तो? क्या करना होगा?"


तभी एक बस थोड़ी धीमी हुई, और बाकी यात्री जैसे-तैसे उस पर चढ़ने लगे। मैं भी भागा, लेकिन भीड़ ज़्यादा थी और मैं बस के गेट तक पहुंचते-पहुंचते पीछे रह गया। बस आगे बढ़ने लगी, और मेरे मन में डर घर करने लगा— "अब क्या होगा?"


तभी अचानक दरवाजे पर खड़ा एक लड़का ज़ोर से चिल्लाया, "आओ! जल्दी आओ!"



Real life story
Anjaan Madad  - Real Life Story



पहले तो मैं चौंका। कौन है ये? लेकिन फिर देखा कि वो बस में खड़ा होकर मुझे बुला रहा था। बस धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी, और मेरे पास वक्त नहीं था। मैंने हिम्मत जुटाई और भागा। जैसे ही मैं बस के करीब पहुंचा, उस अनजान लड़के ने मेरा हाथ पकड़ा और पूरी ताकत से मुझे अंदर खींच लिया।


मैं हांफ रहा था, लेकिन उस लड़के की आंखों में एक अजीब सी चमक थी। उसने मुस्कुराकर कहा— "अगर तुम नहीं चढ़ पाते तो मैं भी बस से कूद जाता। तुम्हें अकेला नहीं छोड़ सकता था।"


मैं अवाक था। कौन था ये? क्यों मेरी मदद की इसने?


मैंने उसका नाम पूछा, लेकिन उसने सिर्फ इतना कहा— "कोई भी होता तो यही करता।" और फिर अगले स्टॉप पर बिना कुछ कहे बस से उतर गया।


एक नहीं, कई बार ऐसा हुआ...


ये पहली बार नहीं था। इससे पहले भी सफर में कई बार ऐसा हुआ था, जब अजनबी लोगों ने मेरी मदद की और फिर बिना कोई नाम बताए गायब हो गए। एक बार ट्रेन में मेरा पर्स गिर गया था, और मुझे पता भी नहीं चला। स्टेशन पर एक लड़की ने आवाज़ दी—  ये तुम्हारा पर्स गिर गया था। संभाल कर रखना।" मैंने शुक्रिया कहा और जब तक कुछ और पूछता, वो भीड़ में कहीं खो गयी।


एक और बार, जब मैं एक अनजान शहर में रास्ता भटक गया था, तब एक आदमी ने बिना मांगे मेरी मदद की, मुझे सही रास्ता दिखाया, और फिर बिना नाम बताए चला गया।


तो ये लोग कौन होते हैं ?


क्या ये सिर्फ अच्छे इंसान होते हैं, या फिर सच में ऊपरवाला किसी न किसी रूप में हमारी मदद के लिए भेजता है?


हम अक्सर सोचते हैं कि लोग अब सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं। लेकिन क्या ये सच है? अगर ऐसा होता, तो फिर ये अजनबी क्यों मदद करने आए?

 क्यों उन्होंने बिना किसी स्वार्थ के हाथ बढ़ाया?


अब सवाल हम सबके सामने है—


क्या हम भी किसी के लिए अनजान मददगार बन सकते हैं?


क्या हम बिना किसी स्वार्थ के किसी अजनबी की मदद कर सकते हैं?


क्या हम ये सोचकर किसी की मदद करने से रुक जाते हैं कि "मुझे इससे क्या मिलेगा?"



अगर हम वाकई चाहते हैं कि ये दुनिया खूबसूरत बने, तो हमें भी किसी न किसी का " अनजान मददगार " बनना होगा। जब भी मौका मिले, बिना सोचे-समझे किसी की मदद करनी होगी, बिना यह उम्मीद किए कि बदले में हमें कुछ मिलेगा।


हो सकता है, किसी का छोटा-सा अच्छा काम हमारी ज़िंदगी बचा दे। और हो सकता है, हमारा एक छोटा-सा नेक काम किसी और की दुनिया बदल दे।



क्यों हम सिर्फ अपनी ही दुनिया में सिमट कर रहते हैं ? 

अगर हमें लगता है कि भगवान किसी को हमारी मदद के लिए भेज सकता है, तो क्या हम भी किसी और के लिए ऐसे मददगार नहीं बन सकते?


सोचिए... हो सकता है, कल कोई और हमारी मदद का इंतज़ार कर रहा हो |


सोचिए... क्या अगली बार जब किसी को मदद की ज़रूरत होगी, तो आप उसके लिए "अनजान मदद" बनेंगे ?